Friday 11 November 2016

Maa

नर्म घास बन पैरों को सेहलाती
सख्त फूस सी छप्पर बन छा जाती
कांटे शूल बन अपने फूलों को बचाती
पवन में नमी बन धूप में ठण्ड से दुलराती
तप कर थक कर बस कर्त्तव्य निभाती
तभी तो है माँ पूजी जाती

तपिश भरी गर्मी से तन को, है बारिश बन नहलाती
ठिठुरन को भी धूप ताप से अपने कम कर जाती
शिशिर शरद वर्षा वसंत बन हर ऋतु का ज्ञान कराती
मृदु विनोद कोमल कठोर हो हर जीवन सीख सिखाती
तप कर थक कर बस कर्त्तव्य निभाती
तभी तो है माँ पूजी जाती

अपने कष्टो में जो मेरे अधरों से मुस्काती
मेरे चोटिल होने पे जो अपने अश्रु बहाती
हंस देती, मुस्काती कर कुछ भी अपने संताप छुपाती
मेरे क्षणिक वेदन को भी जो ज़रा नहीं सह पाती
तप कर थक कर बस कर्त्तव्य निभाती
तभी तो है माँ पूजी जाती

धारण करने से जीवन तक लाने में लग जाती
दुलराती, समझाती, कभी दे पीड़ा पाठ पढ़ाती
नेक नाम, कर्त्तव्य निर्वहन की जो है राह दिखाती
बालक के मन मंदिर को है कस्तूरी सा मेहकाती
कई अनेको हैं कारण जो है वात्सल्य कहाती
माँ अम्मा आई मम्मा सब बन मातृत्व लुटाती

धरती जैसी ही तपती चलती और सब कुछ सहती जाती
तपती थकती सहती पर कर्त्तव्य निभाती 
तभी तो है माँ पूजी जाती

तभी तो है माँ पूजी जाती

Monday 7 November 2016

Jeevan

कुछ जोड़ लिया कुछ छोड़ दिया, कुछ अदा किया कुछ तोड़ लिया।
मन लगा तो था हाँ उसमे भी, पर समझ गया मन मोड़ लिया।।

जो छुटपन था मेरा बचपन था, उस गली में कितनी मस्ती थी
मेरी बड़ी शरारत पर भी माँ, बस हलके हलके हंसती थी
वह बीत गया क्यों चला गया मेरे रहते क्यूँ दम तोड़ गया
मन लगा तो था हाँ उसमे भी, पर समझ गया मन मोड़ लिया।।

वो लड़कपना बेधड़कपना करना था वही होता जो मना
वो अड़ जाना वो भिड़ जाना बिन बात ही सबसे लड़ जाना
उस अड़ियलपन की मस्ती को क्यों भूल गया क्यों छोड़ दिया
मन लगा तो था हाँ उसमे भी, पर समझ गया मन मोड़ लिया।।

एक बार मोहब्बत होती है बस सुना नहीं पर माना था
बस इसीलिए शायद अपना उस गली में आना जाना था
हम शायर जिसके लिए हुए उसने ही क्यों दिल तोड़ दिया
मन लगा तो था हाँ उसमे भी, पर समझ गया मन मोड़ लिया।।

कुछ बड़े हुए उठ खड़े हुए क्या बात थी अपनी हस्ती में
सब भूल भाल सब छोड़ छाड़ लग गए थे उसकी मस्ती में
फिर सत्य मिला सब भुला दिया, जीवन ने ऐसा मोड़ लिया
अब चित्त चिरंतन को पाने में बस अपना है लगा हुआ

क्या अपना था जो जोड़ लिया क्या छूटेगा जो छोड़ दिया
मन लगा तो था हाँ सब में ही मिल गया ख़ुदा सब छोड़ दिया


Kuchh jod liya kuchh chhod diya, kuchh ada kiya kuchh tod liya
Mann laga to tha haan usme bhi, par samajh gaya man mod liya

Jo chhutpan tha mera bachpan tha, us gali me kitni masti thi
Meri badi shararat par bhi maa bas halke halke hansti thi
Wo beet gaya kyu chala gaya, mere rahte kyu dam tod gaya
Mann laga to tha haan usme bhi, par samajh gaya man mod liya

Wo ladakpana bedhadakpana, karna tha wahi hota jo mana
Wo ad jana wo bhid jana bin baat hi sabse lad jana
Us adiyalpan ki masti ko kyu bhool gaya kyu chhod diya
Mann laga to tha haan usme bhi, par samajh gaya mann mod liya

Ek baar Mohabbat Hoti hai Bas Suna Nahi Par Maana tha
Bas isilie shayad apna us gali me aana jaana tha
Hum Shayar jiske lie hue usne hi kyu dil tod diya
Mann laga to tha haan usme bhi par samajh gaya mann mod liya

Kuchh bade hue uth khade hue, Kya baat thi apni hasti me
Sab bhool bhaal sab chhod chad lag gae the uski masti me
Fir Satya mila sab bhula dia, jeevan ne aisa mod liya
Ab Chitt Chirantan ko paane me bas apna hai laga hua

Kya apna tha jo jod liya kya chhutega jo chhod diya


Mann laga to tha haan sabme hi jab Mila Khuda sab chhod diya

Friday 4 January 2013

Naani

टपकते  छप्पर  की  लटकती  फूस  से  टप टप   करता  पानी
उस  सोंधे  सोंधे  घर  में  रहती  थी  कभी  नानी

 

मिटटी  के  चूल्हे  पे  आँखे  जला  जला  कर 
अपने  हाथो  को  तपते  तवे  से  बचा  बचा  कर
महकते  पराठे  की  हर  परत  पे  प्यार  लगा  लगा  कर
एक  कौर  भी  जो  अटके , दौड़  लाती  थी  वोह  पानी
उस  सोंधे  सोंधे  घर  में  रहती  थी  कभी  नानी

 

हर  आम  उसने  चख्खा , मीठा  हुआ  खिलाया
एक  एक  जोड़  करके  सिक्का  गुड्डा  वही  दिलाया
थके  पैरो  पे  अपने  लेकर  झुला  भी  था  झुअलाया
सोते  वक़्त  रोज़  हमको  सुनती  थी  वोह  कहानी
उस  सोंधे  सोंधे  घर  में  रहती  थी  कभी  नानी

 

न  जाने  सिर्फ  गर्मी , ही  क्यूँ  थी  उसको  भाती 
थक  नींद  आ  जो  जाए  अपने  पास  ही  सुलाती
पंखा  बना  के  पल्लू  हर  पहर  झलती  जाती
पर  सोच  मेरा  जाना  न  रुकता  वो  खारा  पानी
उस  सोंधे  सोंधे  घर  में  रहती  थी  कभी  नानी

 

न  घर  रहा  न  छप्पर , न  टप   टप  रही  न  फूस  
पर  आज  भी  है  दिल  को , होता  यही  महसूस 
होती  है  जब  भी  बारिश  मिटटी  पे  पड़ता  पानी
बस  सोचता  हूँ  अब  मैं  कह  दे  कोई  कहानी 
उस  सोंधे  सोंधे  घर  में  रहती  थी  कभी  नानी
उस  सोंधे  सोंधे  घर  में  रहती  थी  कभी  नानी